मदन मोहन शर्मा सजल

प्रेम ही पूजा


कली ने इशारा किया अलि भागा दौड़ा आया


परिणय की लालसा, मन में समाई है।


 


गुँजन गुंजित शोर, खिल उठा पोर-पर


राधा कृष्ण बन जाये, बाँसुरी बजाई है।


 


कली ने निहारा अलि, लज्जा आँखों बीच पली


लेकर सहारा डाल, थोड़ा शरमाई है।


 


होटों पे तराना आया, प्रीत ज्वर ज्वार छाया


बाहों में समाया अलि, प्रणय बेला आई है।


 


डूबता ही चला गया, होश तन सारा खोया


निशा की सवारी आई, शाम गहराई है।


 


भूल गया सब कुछ, नही रहा याद कुछ


बन्द हुए कली पट, मौत चली आई है।


 


साँसों में घुटन हुई, प्राणों की अटक हुई


छूटे प्राण संग-संग, जहां से विदाई है।


 


प्रेम में ही मिट जाना, ऐसा प्रेम अपनाना


प्रीत याद बन जाये, अलि ने जताई है।


 


समर्पित भाव रहें, लोभ मोह दूर रहें


स्वार्थ का न नाम कहीं, सच्चाई बताई है।


 


प्रेम नहीं राजा रंक, प्रेम में नहीं आशंक


प्रेम पूजा भगवान, वेदों ने जताई है।


 


मदन मोहन शर्मा सजल


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