नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

आईना कहता इंसा देखता


मुझमे चेहरा अपना।


तमाम दाग छुपा देता


चहरे का मैं आईना।।


 


चाँद कहता है दाग है


मुझमे फिर भी हुस्न का


नाज़ मैं चाँद मैं आईना।।


 


चाँद ख़ास अकिकत का


चाँद पूर्ण मै पूर्णिमा 


चौथ का चाँद का भाव भाव


 चौदहवी का चाँद हुस्न हैसियत का रुतबा।।


 


चाँद दूज का एकरार


ईद का चाँद यकीन एतबार


जहां अपना।


सावन सुहाने मौसम में


बादलों में पनाह ठाँव अपना।।


 


ठंडी हवा के झोकों में


जुल्फों का साया 


चाँद से चेहरे का सेहरा


अपना।।


 


रातों की तन्हाईओं में


चाँदनी चाँद का क्या 


कहना।


मेरी पूनम की रौशनी


में उठता सागर के दिल


की गहराई से इश्क का


तूफां जमाने में मोहब्बत


का जज्बा।।


 


दीवानों की नज़रों में मासूम


मासूका को नज़र आता हूँ


मैं चाँद जैसा चेहरा माँ बाप की औलाद का रौशन चाँद सा चेहरा।।


 


चाँद कहता है सुन आईना


तू तो दाग छुपा लेता इंसा


के तमाम इंसा का।।


 


पूछता तुझसे चेहरे का


सबब दिल की तरह नाज़ुक


आह आहट पर भी टूटता बिखरता।।


 


जमाने के संग संग चलता


जहाँ के गम खुशियों को


दुस्वारियों को झेलता जीता।।


 


बचपन से सुरूर का जूनून


कायनात अपना।।


 


आईना तू तो आपने पराये का


फर्क बतलाता दिल चहरे का


फर्क आईना।


 


चाँद मैं दुनियां में नफरतों


के फर्क से बेगाना इश्क 


मोहब्बत आशिकी का


तरन्नुम तराना मेरा दीवाना जमाना।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


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