नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

हलक को जलाती ,


उतरती हलक में शराब कहते है।।


लाख काँटों की खुशबू गुलाब कहते है।।


छुपा हो चाँद जिसके दामन में


हिज़ाब कहते है।।


ठंडी हवा के झोंके उड़ती जुल्फों


में छुपा चाँद सा चेहरा, बिखरी


जुल्फों में चाँद का दीदार कहते है।।


सुर्ख गालों की गुलाबी ,लवों की


लाली बहकती अदाओं को साकी


शवाब कहते है।।


लगा दे आग पानी में सर्द की


बर्फ पिघला दे जवानी की रवानी


जवानी कहते है।।


जमीं पे पाँव रखते ही जमीं के


जज्बे में हरकत जमीं


की नाज़ मस्ती की हस्ती को


मस्तानी ही कहते हैं।।


सांसों की गर्मी से बहक जाए


जग सारा जहाँ का गुलशन


गुलज़ार कहते है ।।           


 


धड़कते दिल की धड़कन से साज


की नाज़ मीत का गीत संगीत कहते है।।


सांसो की गर्मी से निकलती 


चिंगारी ,ज्वाला हद ,हसरत की दीवानी उसे कहते है।।


मिटा दे अपनी हस्ती को या


मिट जाए आशिकी में आशिक


नाम कहते है।।


नशे में चूर इश्क के जाम जज्बे


में हुस्न का इश्क में दीदार कहते


है।।


नादाँ दिल की शरारत में 


कमसिन बहक जाए कली


नाज़ुक का खिलना चमन


बहार कहते है।।


सावन के फुहारों में ,वासंती


बयारों में बलखाती बाला बंद


बोतल की शराब पैमाने का इंतज़ार कहते है।। इश्क के अश्क ,अक्स एक दूजे


के दिल नज़रों में उतर जाए इश्क की इबादत इश्क इज़हार कहते है।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


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