चाँद अब भी मुस्कुराता
अपने अंदाज़ में चलता
जाता।।
चाँदनी संग निकालता ढलता
जाता।
चाँद को देखता हूँ याद आता
गुजरा हुआ ज़माना।।
जवाँ मोहब्बत की अगन
चाँद ,चाँदनी की मोहब्बत का
दीदार बुझाता।।
एक दूजे की नज़रो से दिल में
उतरते ख्याब ,हकीकत
का चाँद नज़र आता।।
सर्द मौसम की गलन
चाँद चाँदनी एक जिस्म
दो जान का आना सर्द की
बर्फ पिघलना इश्क गर्मी का
याराना।।
सावन का सुहाना मौसम ठंडी
हवा के झोंके बिखरी जुल्फे
चाँद से चेहरे का शर्माना।।
रिम झिम सावन की फुहारों में
भीगा बदन साँसों की गर्मी
चाँद का जमीं पर उतर जाना।।
सावन की घटाओं में
चाँद का छुप जाना घाना
अँधेरा मोहब्बत के चाँद
का जहाँ में उजाला।।
वासंती बयारों की मादकता
हाला प्याला पायल की
छम छम चाँद चाँदनी
का आना।।
मोहब्बत की गर्मी से जलता बदन साँसों धड़कन में अजीब सी हलचल।
जिस्म से टपकता पसीना मोती
जैसा चाँद की चांदनी में चाँद का
मुस्कुराराना।।
जमीं पे आज भी हूँ
अम्बर पर चाँद का नाज़ भी है।
जवां इश्क हुस्न का चाँद
जाने कहाँ चला गया आता
नहीं दोबारा।।
तब चाँद जवां जज्बा जज्बात
चाँद अब यादों के तरानों में तड़पाता।।
आज भी इंताज़र जाने कब आएगी नादाँ ,कमसिन,
नाज़ुक ,भोली चाँद ।
आशिकी जिंदगी का जूनून
आशिक की चाँद नाज़रांना।।
जिंदगी में मोहब्बत मकसद का
चाँद जिंदगी में मोहब्बत कशिश काश गुजरा अफसाना दिल दर्द चाँद का सफ़र सुहाना।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें