निशा अतुल्य

बेटी चली


रात तारों भरी धीरे धीरे चली है


चाँद सँग जैसे चाँदनी चली है 


सकुचाई सी एक नाजुक कली है


सोलह शृंगार से सजी दुल्हन बन चली है।


छोड़ बाबुल का अँगना बीटिया चली ।


 


बाबुल का आँगन छूटा चला


भाई बहनों का नेह पीछे खड़ा


मैया की आँखे हुई है सजल 


सोलह शृंगार से सजी दुल्हन है चली ।


छोड़ बाबुल का अँगना बीटिया चली ।


 


ये अम्बुवा की डारी पे झूला पड़ा


सखियों का सँग छूट पीछे खड़ा 


वो बचपन की यादें वो प्यारी सी बातें


सभी आँचल में भर कर चली 


सोलह शृंगार से सजी दुल्हन है चली।


छोड़ बाबुल का अँगना बीटिया चली ।


 


अब नए रिश्ते नाते निभाने ही होंगे


जो कल थे पराए आज अपनाने होंगे


प्यार का सागर नैनो में भर चली है 


नन्ही कली फूल बनने चली है 


सोलह शृंगार से सजी दुल्हन है चली।


छोड़ बाबुल का अँगना बीटिया चली ।


 


पराए थे जो हुए सभी उसके अपने 


अपनो को छोड़ जो आज चली है 


कैसी ये दुनिया की रीति बनाई 


बेटी कभी नही होती पराई 


उसे तो दो घर इस जन्म में मिलें है 


दो कुल की मर्यादा बन वो खिले है ।


सोलह शृंगार से सजी दुल्हन है चली।


छोड़ बाबुल का अँगना बीटिया चली ।


 


निशा अतुल्य


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