जीवन नदी की धार सा है
बने किनारे हम और तुम ।
सँग सँग चलना हमें है
पास हैं नजारे,तुम क्यों दूर ।
रेत के कुछ कण आ लिपटे हैं मुझे
एक तुम्हारे स्पर्श की देते अनुभूति मुझे
दूर से तकना तुम्हें,पवन के अहसास से
एक आँचल छू निकलता,जाने कब,
कैसे मुझे।
चल रहे है साथ हम तुम ले अधूरी प्यास को
तोड़ कर हर तट बन्धन सागर में अब आ मिलो ।
बाहें पसारे मैं खड़ा हूँ वहीं तुम्हारे इंतजार में
दो किनारे हम नदी के कुछ कह न सकें संसार को ।
प्यार कर के निभना,प्रीत राधा श्याम सी
निर्बाध बहते रहें नदी सम ना कभी कुछ बात की ।
हो गए दोनों अमर वो बस गए हर एक में
इश्क़ की बन मिसाल,बहते नदी सम धार में ।
स्वरचित
निशा अतुल्य
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