निशा अतुल्य

कागज और कलम का साथ 


एक जीवन साथी जैसा ही है 


मनोभावों की अभिव्यक्ति 


कागज पर उकेर कर क़लम


निश्चिंत हो जाती है 


चैन से सो जाती है।


कागज भावनाओं का बोझ लिए 


दूसरों को समर्पित कर अपना जीवन


धीरे धीरे खो जाता है कहीं 


दूसरों के हाथों में खेल खेल कर ।


बंध एक सूत्र में पन्ने


है पुस्तक कहलाती


पुस्तक देती ज्ञान, ध्यान, समझ


मन के भावों को समझाती ।


नई राह दिखाती 


मुसीबतों से बचाती


हाँ पुस्तक ही है ये 


जो कभी बन रामायण 


त्याग सिखाती है ।


कभी गीता का पढ़ा पाठ


कर्मक्षेत्र सिखाती है 


शास्त्रों पुराण की बातें


प्रकृति व जीवन सार समझाती ।


हाँ पुस्तक ही है जो


बन मित्र जीवन पथ पार कराती 


चाहे करे कोई दुश्मनी कैसी भी


ये हमेशा मित्र बन साथ निभाती ।


ज्ञान प्रज्ञा बढ़ाती 


जीवन आसान बनाती ।


 


निशा अतुल्य


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