हिन्दी
आज ढूंढती
स्वयं में स्वयं
कहाँ है
विकास ।
भाषा
मातृ तुम्हारी
क्यों स्वीकार्य नही
कोई मुझे
बताएगा ।
साप्ताहिक
कार्यक्रम इतिश्री
मना कर पखवाड़ा
पल्ला मत
झाड़िये ।
छंदों
की परिभाषा
नवरसों से भरी
अलंकृत हो
सजी ।
हिन्दी
प्रसार प्रचार
नही एक दिन
जीवन में
उतारिए ।
हिन्दी
हमारा आत्मसम्मान
अटल की पहचान
अंतरराष्ट्रीय बढ़ाया
मान ।
हमें
अपनाना होगा
सम्मान दिलाना होगा
बना कर
मातृभाषा ।
हिन्दी
सदा महान
जीवन मन प्राण
अंतर्मन मन
बैठाइए ।
स्वरचित
निशा अतुल्य
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