नूतन लाल साहू

माटी की महिमा


माटी का कोई भेद न जाने


माटी है अनमोल


माटी से है, बाग बगीचा


माटी से नदिया तरिया


धूप छांव,माटी की माया


माटी है बेजोड़,जगत में


माटी का कोई भेद न जाने


माटी है अनमोल


माटी में ही जल है


माटी में ही अन्न उपजत हे


माटी में ही हीरा मोती जवाहरात


माटी में ही जीवन मंगल है


माटी का कोई भेद न जाने


माटी है अनमोल


माटी में ही, बारी अउ बखरी


माटी में ही खेत खलिहान


माटी में ही संसार बसा है


मानव जीवन में भी,माटी का अंश है


माटी का कोई भेद न जाने


माटी है अनमोल


माटी में ही, किसम किसम के फूल फूले है


माटी की महिमा,न्यारी है


माटी में ही भालू अउ कोलिहा


जंगल में मंगल होत है


माटी का कोई भेद न जाने


माटी है अनमोल


ये माटी न तेरी है,ये माटी न मेरी है


माटी के नाम से ही,आपस में लड़ जाते हैं


माटी में ही मंदिर मस्जिद


माटी से ही,भगवान का मूर्ति बना है


माटी का कोई भेद न जाने


माटी है अनमोल


नूतन लाल साहू


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