नूतन लाल साहू

समस्या


कहते हैं, सागर की अपनी


    होती हैं, मर्यादा


    पर, समस्या तो


अमर्यादित हो गया है


दिनोदिन तांडव कर रहा है


वाणी भी मौन हो रहा है


कल्पना नहीं कर सकते है हम,समस्या


इतना विकराल रूप, क्यों ले रहा है


अब तक नहीं हिला था मै, पर


अब हिलना स्वाभाविक, हो गया है


यो न करते,प्रकृति से खिलवाड़, हम


तो टूट टूटकर,बिखरना न पड़ता हमे


कहते है,सागर की अपनी


     होती हैं मर्यादा


     पर, समस्या तो


अमर्यादित हो गया है


डुब गया,पलको में सपने


समस्या,हर पल तांडव कर रही हैं


लहर लहर बन,कहर बरपा रही है


सुख की आशा,हमने छोड़ दिया है


जब चाहा आघात कर रहा है


कलियुग में समस्या,इतना बढ़ गया है


कहते है,सागर की अपनी


     होती हैं मर्यादा


     पर, समस्या तो


अमर्यादित हो गया है


जब भी चाहा,विस्फोट कर दिया


चंदन सी प्यारी,भारत मां की माटी पर


लक्षण बता रहे हैं,युग के


धरती भी, डावा डोल हो रही है


कैसे चलाऊ, जीवन रथ को पथ पर


समस्या ही समस्या,दिख रहा है


कहते हैं, सागर की अपनी


      होती हैं मर्यादा


      पर समस्या तो


अमर्यादित हो गया है।


 


नूतन लाल साहू


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