, आलस को तू त्याग दे बंदे
बड़ कठिनाई से तुमने, नरतन पाया है
जगत में जीवन है,चार दिनों का
आलस छोड़,मानुष जन्म सुधार
नहीं तो,कुछ भी हाथ नहीं आयेगा
तेरा निर्मल रूप,अनूप है
नहीं हाड मांस की काया
सब दिन होत न एक समान
जिंदगी बेकार न हो जाये
कैसे बैठे हो,आलस में बंदे
बातन बातन में,सब दिन खो रहा है
बड़ कठिनाई से तुमने, नरतन पाया है
जगत में जीवन है,चार दिनों का
आलस छोड़,मानुष जन्म सुधार
नहीं तो,कुछ भी हाथ नहीं आयेगा
सोवत सोवत,उमर बीत गई
काल शीश पर,मंडरा रहा है
सुनहरा अवसर,चूक न जावे
बड़े भाग तू,मानुष तन पाया है
बड़ कठिनाई से तुमने, नरतन पाया है
जगत में जीवन है,चार दिनों का
आलस छोड़,मानुष जन्म सुधार
नहीं तो,कुछ भी हाथ नहीं आयेगा
तेज भवर में फंस गई हैं, नैया
तू ही बता,अब कौन है खिवैया
देव देव आलसी पुकारे
सुकृत कर्म करो,बिनु स्वारथ के
बड़ कठिनाई से तुमने, नरतन पाया है
जगत में जीवन है,चार दिनों का
आलस छोड़,मानुष जन्म सुधार
नहीं तो,कुछ भी हाथ नहीं आयेगा
नूतन लाल साहू
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