आज का प्रजातंत्र
जहां तक नजर जाती हैं
उठने की कोशिश करता हुआ
अपंग बच्चा की तरह
चीख रहा है
मुझे दलदल से निकालो,मै प्रजातंत्र हूं
काम वाले हाथो में
झंडा थमा देने वाले
वक्त के सौदागर
बड़े ऊंचे खिलाड़ी होते हैं
गरीब जनता की मज़बूरी
इधर कुआ, उधर खाई है
तीस की उम्र में, साठ के नजर आता है
दर्द का खजाना,आंसुओ का समंदर है
अपंग बच्चा की तरह,चीख रहा है
मुझे दलदल से निकालो,मै प्रजातंत्र हूं
जो सपना देखा था
बाल, लाल, पाल,सुभाष चन्द्र बोस और
महात्मा गांधी जी ने
बुरा मत देखो,बुरा मत सुनो,बुरा मत बोलो
पर हमारे देश का प्रजातंत्र
वह तंत्र है
जिसमे हर बीमारी स्वतंत्र है
अपंग बच्चा की तरह, चीख रहा है
मुझे दलदल से निकालो,मै प्रजातंत्र हूं
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है
कर्म करो और फल मुझ पर छोड़ दो
पर आज,बहती गंगा में हाथ धो लो
देश चलाने वाले,सोच रहा है
दल बदल, कुर्सी हथियाना,पैसा कमाना
मानो तरक्की का,सीढ़ियां बन गया है
राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण
भावी पीढ़ी पर,छोड़ रहा है
अपंग बच्चा की तरह, चीख रहा है
मुझे दलदल से निकालो,मै प्रजातंत्र हूं
नूतन लाल साहू
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