नूतन लाल साहू

पुरखा के सुरता


पुरखा के डिही म, दीया ल जला लेे


पुरखा के सुरता ल, कभू झन भुलाबे


पुरखा के चलाये,रीति रिवाज


सुमत म चलत हे,पूरा संसार


पुरखा नी चाहय, खरचा कर जादा


नाम चलत रहय, इही चाहत हे


पुरखा के डिही म, दीया ल जला लेे


पुरखा के सुरता ल, कभू झन भुलाबे


बर पीपर, अमरईया,पुरखा के निशानी


छइहा पावत हे, लइका अउ सियान ह


रघुकुल रीति,सब झन ल याद हे


परान दे दे, पुरखा नी चाहत हे


पुरखा के डिही म, दीया ल जला लेे


पुरखा के सुरता ल, कभू झन भुलाबे


पुरखा ल देवता कहवइया,समाज ह


वोला काबर भूलावत जात हे


पुछथव अपन आप सो,काबर होवत हे अइसना


कभू कुछु मागय नहीं,पुरखा ह अधिकार ल


पुरखा के डिही म, दीया ल जला लेे


पुरखा के सुरता ल, कभू झन भुलाबे


काबर नइ जानय,महू ल बनना हे पुरखा


नइ कहावन, कुलटा अउ कुलबोरनी


भीतरे भीतर कसकत हे,पुरखा के मन हा


काबर भूलावत हे,अपन पुरखा ल


पुरखा के डिही म, दीया ल जला लेे


पुरखा के सुरता ल, कभू झन भुलाबे


पुरखा कोन सो, कहय अपन पीरा ल


बच्छर दिन बाद, आथे सुरता ह


खोजत हव मय हा,अपन वो ही गांव ल


सपना म घलो,अपन पावव वो पल के आंनद ल


पुरखा के डिही म, दीया ल जला लेे


पुरखा के सुरता ल, कभू झन भुलाबे


नूतन लाल साहू


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...