नूतन लाल साहू

ऐसा भी होता है


एक दिन अकस्मात


हो गई,पुराने मित्र से मुलाकात


हमने कहा, सादर नमस्कार


वे बोले, गजब हो गया यार


गृहस्थी का बोझ ढो रहा हूं


ईश्वर की मेहरबानी है


मेरी सात कन्याये है


जीवन की बगिया में,आंसू बो रहा हूं


हमने कहा, आम की उम्मीद लिये


बबूल में लटके जा रहे हो


हम दो हमारा दो


सूखी परिवार के नारा को,क्यों नहीं अपना रहे हों


वे बोले, अपनी किस्मत में तो


फनफनाती हुई बीबी है


और दनदनाती हुई औेलाद है


सच पूछो तो, यही


पूंजीवाद और समाजवाद के बीच


फंसा हुआ बकरावाद है


शेर की तरह दहाड़ते,बारात लेकर गया था


अब बकरे की तरह,मिमिया रहा हूं


हमने कहा, देश का क्या होगा


संतान भगवान की देन हैं ये


बरसो से चला आ रहा है


छोटा परिवार,सुखी परिवार


शासन प्रशासन,रोज रोज चिल्ला रहा है


अपने भाग्य को,मत कोषों


नारी शिक्षित और समझदार हो गई हैं


आपसी सामंजस्य बिठाकर बोलो


हमारा भी कोई कैरियर है


हर बीस मील के बाद, एक बैरियर है


शिक्षित हो ठीक है,समझदार भी बनो


आरोप दूसरे पर मढ़ने से बचो


व्यक्ति में यदि,भक्ति समा जावे तो


व्यक्ति,इंसान बन जाता है


और यदि भक्ति,घर में समा जावे तो


घर, मंदिर बन जाता है


सहमति और भक्ति की भावना जगाओ


घर,परिवार और देश में


आदर्श स्थापित करने का प्रयास करो


नूतन लाल साहू


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