राजेंद्र रायपुरी

हरगीतिका छंद पर रचना-- 


 


है राम की निकली सवारी, 


                        हो रही जयकार भी।


मूरत बड़ी प्यारी प्रभो की,


                           है गले में हार भी।


मंगल कलश सिर पर लिए कुछ,


                          साथ में हैं नार भी।


बैठे प्रभो जिस स्वर्ण रथ वह,


                        है बृहद आकार भी।


 


             ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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