राजेंद्र रायपुरी

कोरोना का भय 


 


कोरोना का भय, 


उन्हें भी सता रहा है।


जिनके जाने का समय,


नज़दीक आ रहा है।


 


बाॅ॑ध रहे हैं मुॅ॑ह पर रुमाल।


ताकि,


कहीं हो न जाए वही हाल।


जो औरों का हो रहा है।


अंतिम समय में अपनों से, 


एक फूल तो क्या,


काॅ॑टा भी नसीब नहीं हो रहा है।


 


दुख दर्द सहकर जीवन भर,


रिश्तों की जो पूॅ॑जी बनाई।


अंत समय में,


यदि वो भी काम न आई।


फिर तो, 


सारा जीवन ही गया बेकार।


यही सोचकर,


हर दिन दुबले हो रहे हैं।


प्रत्यक्ष न सही,


अंदर ही अंदर वे रो रहे हैं।


 


कोरोना ने, 


ये कैसा कहर ढाया है,


कि अपना भी लगे, 


जैसे पराया है।


नहीं कर पा रहे हैं ख़ुद,


अपने प्रिय का अंतिम संस्कार।


हाय रे कोरोना।


तूने दिया, 


सारे रिश्तों को भी मार।


 


         ।। राजेंद्र रायपुरी।।


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...