मात-पिता और श्राद्ध
पितृ पक्ष में ढूॅ॑ढ रहे हैं,
इधर उधर वो काग।
मात- पिता के श्राद्ध का,
लेकर पूड़ी-साग।
कागा लेकिन दिखे कहीं ना,
वे हैं बहुत उदास।
बैठे हुए पेड़ के नीचे,
वे कागा की आस।
मन में चिंता बढ़ती जाए,
हुए पितर जो रुष्ट।
निश्चित है ये आज नहीं कल,
होगा बड़ा अनिष्ट।
चिंता मग्न देख निज़ सुत को,
धरे काग का रूप।
प्रगट हो गए मात-पिता,
निज़ स्वभाव अनुरूप।
थे लेकिन आंखों में आंसू,
कर के दिन वो याद।
भेज दिया था जब बृद्धाश्रम,
सुना नहीं फरियाद।
मात-पिता का दिल कोमल पर,
संतति का फौलाद।
एक नहीं लाखों हैं ऐसी,
इस जग में औलाद।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
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