लक्ष्मी बाई फिर आई है,
ले करके अपनी तलवार।
सबक सिखाने उनको जिनकी,
जीभ बनी कैंची की धार।
नहीं डरी वो नहीं डरेगी,
गीदड़ भभकी मिले हजार।
है क्षमता उसमें सहने की,
चाहे लाख करो तुम वार।
दिखा दिया है दमखम अपना,
पहुॅ॑च गई शेरों के द्वार।
आओ जिसमें दम है मारो,
दिया सभी को है ललकार।
झाॅ॑क रहे हैं बॅ॑गले सारे।
जिनने भरी थी कल हुॅ॑कार।
झेंप मिटाने लेकिन अपनी,
करें घरौंदे पर वे वार।
भले ज़ुल्म ढा लो तुम लाखों,
डालेगी ना वो हथियार।
फौलादी हैं सदा रहेंगे,
उसके अपने सोच-विचार।
दुहराना इतिहास उसे है।
सदी बीस में अबकी बार।
जैसे सत्तावन में उसने,
लहराई अपनी तलवार।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें