दिया प्रकृति ने सब कुछ तुमको।
उसको ज़रा सहेजो।
आभारी हम तेरे दाता,
ये संदेशा भेजो।
जीने को दी हवा सहज ही,
पीने को दी पानी।
इन्हें प्रदूषित करते हो तुम,
कर हर दिन मनमानी।
खाने को भी कंद-मूल फल,
बिन माॅ॑गे ही देती।
इसका भैया मोल न कुछ भी,
कभी प्रकृति है लेती।
लेकिन यही अपेक्षा उसकी,
वृक्ष नहीं तुम काटो।
ज़हरीले रासायन से तुम,
धरती को मत पाटो।
दिया प्रकृति ने जो भी तुमको,
यदि न कद्र करोगे।
मानो कहना बिना मौत ही,
एक न सभी मरोगे।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
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