न शायरी लिखी कभी दिमाग को न धार दी
न जीत भी मिली हमें न हार भी कुबूल है ।
सदा खिली बहार में बहार ढूंढते रहे
बहार जो मिली हमें वही अभी कुबूल है ।
न साहिबा मिली हमें न आशिकी हुई कभी
मिली सदैव धूप ये हमें यही कुबूल है।
अमन मिले सुमन खिले रहे सदा खुशी यहां
खिला रहे वतन सदा हमें वही कुबूल है ।
न इश्क चाहिए हमें न आशिकी करें कभी
हरी भरी रहे धरा हमें यही कुबूल है।
संदीप कुमार विश्नोई रुद्र
गाँव दुतारांवाली तह0 अबोहर जिला फाजिल्का पंजाब
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