संजय जैन

सच्चे रिश्ते


 


अपने बचपन की बातें


आज याद कर रहा हूँ।


कितना सच्चा दिल हमारा


तब हुआ करता था।


बनाकर कागज की नाव,


छोड़ा करते थे पानी में।


बनाकर कागज के रॉकेट,


हवा में उड़ाया करते थे।


और दिल की बातें हम


किसी से भी कह देते थे।


और बच्चों की मांग को


सभी पूरा कर देते थे।।


 


न कोई भय न कोई डर,


हमें बचपन में लगता था।


मोहल्ले के सभी लोगों से


जो लाड प्यार मिलता था।


इसलिए आज भी उन्हें


में सम्मान देता हूँ।


और उन्हें अपने परिवार का


हिस्सा ही समझता हूँ।।


 


जो बचपन की यादों से 


अपना मुँह मोड़ता है।


और उन सभी रिश्तों को


समय के साथ भूलता है।


उससे बड़ा अभागा और


कोई हो नहीं सकता।


जो अपने स्वर्णयुग को 


कलयुग में भूल रहा है।।


 


सगे रिश्तो से बढ़कर 


होते मोहल्ले के रिश्ते।


तभी तो सुख दुख में


सदा ही खड़े हो जाते है।


और अपनों से बढ़कर


निभाते सभी रिश्ते।


इसलिए मातपिता जैसे


वो सभी लोग होते है।


और हमें ये लोग अपने 


परिवार का हिस्सा लगते है।।


 


जय जिनेन्द्र देव


संजय जैन (मुम्बई)


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