मन की पीड़ा
न कोई हमारा है
न हम किसी के।
यही सब कहता है
जमाना आज का।
इसलिए तो आज
सीमित है अपनो तक।
नहीं करते चिंता अब
किसी और की हम।।
पहले हम क्या थे
अब क्या बन गये।
जमाने ने हमें
कहा पहुंचा दिया।
और खो दी आत्मीयता
और दिल के रिश्ते।
तभी तो अपने घर
तक के हो गये।।
बना बनाया समाज
अब बिखर गया।
और आत्मीयता का
अब अंत हो गया।
बने थे जो भी रिश्ते
उनसे भी दूर हो गये।
और खुदकी पहचान
खुद ही भूल गए।।
जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुम्बई)
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