बेटियां
घर आने पर,
दौड़कर पास आये।
और सीने से लिपट जाएं,
उसे कहते हैं बिटिया।।
थक जाने पर,
स्नेह प्यार से।
माथे को सहलाए,
उसे कहते हैं बिटिया।।
कल दिला देंगे,
कहने पर मान जाये।
और जिद्द छोड़ दे,
उसे कहते हैं बिटिया।।
रोज़ समय पर
दवा की याद दिलाये।
और साथ खिलाये,
उसे कहते हैं बिटिया।।
घर को मन से,
फूल सा सजाये।
और सुंदर बनाए।
उसे कहते हैं बिटिया।।
सहते हुए भी,
दुख छुपा जाये।
और खुशियां बाटे,
उसे कहते हैं बिटिया।।
दूर जाने पर,
जो बहुत रुलाये।
याद अपनी दिलाये,
उसे कहते हैं बिटिया।।
पति की होकर भी,
पिता को भूल पाये।
सुबह शाम बात करे,
उसे कहते हैं बिटिया।।
मीलों दूर होकर भी,
जो पास होने का।
एहसास दिलाये,
उसे कहते हैं बिटिया।।
इसलिए अनमोल "हीरा"
बेटियां कहलाती है।
और घरों में संस्कार,
भर पूर फैलती है।।
इसलिए इन्हें सरस्वती,
दुर्गा और लक्ष्मी कहते है।
और ये कविता संजय,
बेटी दिवस पर बेटियों को समर्पित करता है।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
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