सत्यप्रकाश पाण्डेय

बन उर्वशी तू पिय की....


 


अजस्र ऊर्जा स्रोतस्विनी


अनन्त धारा सा प्रवाह


नहीं किंचित भी उन्मादी


उद्विग्नता नहीं परवाह


 


उत्कृष्टताओं की आकर


महत्वाकांक्षाओं से दूर


कर्मठता का अक्षय कोष


जिजीविषा से भरपूर


 


प्रांजल भावों की मलिका


दोषारोपण न उपालंभ


लिए कृतज्ञता अन्तर्मन में


जीवन की सुदृढ़ स्तंम्भ


 


तत्वदर्शी सी अनुरागनीया


मर्मस्पर्शी सत्य हिय की


च्युत न हो जाऊं प्रियतमा


बन उर्वशी तू पिय की।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...