शिवांगी मिश्रा

क्यूँ नहीं पनप पा रही हिंदी ?


 


हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और साथ ही साथ हिंदी ही हमारी मातृभाषा भी है ।आज हिंदी का विस्तार हिंदी के प्रयोग की दर घटती ही जा रही है ।यह केवल एक समस्या नहीं वरन विचारणीय तथ्य भी है ।हम अपनी भाषा को त्याग कर विदेशी भाषा को अपना रहे हैं ।जिससे हमारी भाषा का स्तर घटता जा रहा है । हिंदी कहीं न कहीं अपना अस्तित्व खोती जा रही है ।हिंदी का खोना हिंदी का प्रचलन खत्म होना यह सब हमारी संस्कृति पर प्रभाव डाल कर हमारी नई पीढ़ी को वंचित कर रहा है ।हिंदी का हिन्द में प्रचलन ना होना,हिंदी का प्रयोग कम होना हिंदी का विस्तार ना होने का मुख्य कारण यह भी है कि हमनें कहीं ना कहीं धीरे-धीरे विदेशी भाषाओं का प्रचलन उसका प्रयोग प्रारम्भ कर दिया है जो हमारी हिंदी व हम पर हावी है । विदेशी रहन सहन को उसकी बोलचाल को अपनाकर स्वयं को उसमें ढालने का प्रयास किया है ।हम हिन्द के वासी आर्यपुत्र आज अंग्रेजी के रंग में रंगने को इतने आतुर हैं कि हम यह देख भी नहीं पा रहे कि कहीं ना कहीं विदेशी चोंचलों में पड़कर फिरंगी वेशभूषा ,बोलचाल भाषा को अपनाने से हम अपनी हिंदी,अपनी संस्कृति अपनी पहचान को खोते जा रहे हैं ।हमने ही परभाषी बोलचाल को अपने जीवन अपने क्रियाकलापों व रोजमर्रा के बोलचाल में इतनी अहमियत दे दी है कि आज हिन्द देश में अंग्रेजी का बोलबाला है और हिंदी का अस्तित्व खोता जा रहा है ।कारण यह है कि हमने अपनी पीढ़ी को हिंदी में शिक्षा ना देकर अंग्रेजी की तरफ आकर्षित कर अंग्रेजी सीखने को प्रेरित किया ।अपनी मातृभाषा को छोड़ कर अंग्रेजी की तरफ भागे । आज हम अपनी ही मातृभाषा को बोलने व अपनाने में झिझक,शर्म महसूस करते हैं वहीं दूसरी तरफ अंग्रेजी के प्रयोग से गर्व की अनुभूति करते हैं ।अंग्रेजी बोलने में हम स्वयं को शिक्षित ,योग्य,गुणवान व समाज मे बड़े लोगों में उठने बैठने लायक समझकर उनसे अपनी तुलना करने लगते हैं ।यही कारण है कि हमारी हिंदी का अस्तित्व खोता जा रहा है,शुध्द हिंदी का ज्ञान नहीं किसीको,हिंदी पनप नहीं पा रही है उसका विस्तार नहीं हो रहा और हम हिन्द वासी फिरंगी होते जा रहे हैं ।


 


शिवांगी मिश्रा


धौरहरा लखीमपुर खीरी


उत्तर प्रदेश


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...