शिवांगी मिश्रा

हिंदी से ही तो हम तुम बनें हैं ।


हिंदी से ही तो ये सारा जहाँ है ।।


हिंदी ना होती जीवन में तो ।


हिंदी बिना पहचान कहाँ है ।।


हिंदी हमारी माता है और ।


हिंदी से ही अस्तित्व बना है ।।


हिंदी है हिन्द है तो हम सभी हैं ।


हिंदी बिना पूर्ण ज्ञान कहाँ है ।।


 


                  होती श्रृंगार में जैसे जरूरी ।


                  माथे पे बिंदी से होती है पूरी ।।


                  बिंदी बिना श्रृंगार अधूरा ।


                  सोलह श्रृंगार भी होता ना पूरा ।।


                  बिंदी से चेहरे की आभा दमकती ।


                मस्तक लगी बिंदी जब है चमकती ।।


                  हिंदी भी भाषा की बिंदी बनीं है ।


                  दुल्हन सरीखी ये हिंदी सजी है ।।


 


जैसे खुशी में जरूरी मिठाई ।


वैसे ही चाट में होती खटाई ।।


हिंदी का ज्ञान अगर ना हुआ तो ।


मानो हो जीवन अरण्य बिताई ।।


हिंदी मर्यादा का भान भी रखती ।


द्वेष को हरती है बनके अच्छाई ।।


हिंदी का मान करोगे यदि तुम ।


होगी सदा ही तुम्हारी बड़ाई ।।


 


शिवांगी मिश्रा


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