शुभा शुक्ला मिश्रा अधर

वर्णमाला प्रदीप छंद


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अखिल अवनि पर हिंदीभाषी,


साधक अमित अपार हैं।


आओ आज करा दूँ परिचय,


कैसे वर्ण-विचार हैं।।


 


*अ* -अद्भुत अनुपम है यह दुनिया,


*आ* -आते मन में भाव हैं।


*इ* -इसीलिए इस भव-सागर में,


*ई* -ईश्वर सुख की नाव हैं।।


 


*उ* -उड़ा दंभ में जो सब भूला,


*ऊ* -ऊपर सबसे जानता।


*ऋ* -ऋद्धि-सिद्धि सुख से वंचित पर,


*ए* -एक नहीं वह मानता।।


 


*ऐ* -ऐसा व्याकुल मन लेकर वो,


*ओ* -ओझल है प्रभु बोलता।


*औ* -और कहे मैं जग का स्वामी,


*अं* -अंकुर मुझसे डोलता।।


 


*अः* -अः हतभागी कब समझेगा,


*क* -कण-कण में भगवान हैं।


*ख* -खनक रहीं जो खुशियाँ जग में,


*ग* -गति यति सँग लयमान हैं।।


 


*घ* -घटता-बढ़ता सूर्य चन्द्र भी,


*च* -चहके उज्ज्वल कांति से।


         -चलता है संसार सर्वदा,


*छ* -छमछम करता शांति से।।


 


*ज* -जड़ता जब तक मन के अंदर,


*झ* -झरना बहे न प्रीति का।


*ट* -टकरायें सुविचार परस्पर,


*ठ* -ठहरे सागर नीति का।।


 


*ड* -डरें किसी से कभी नहीं हम,


*ढ* -ढलें प्रेम-विश्वास में।


*त* -तनिक समझ लें हिय की भाषा,


*थ* -थकें न,आयें पास में।।


 


*द* -दया-त्याग जैसे गुण पनपें,


*ध* -धन-धीरज अनमोल हो।


*न* -नतमस्तक हो सच को मानें,


*प* -परम सत्य हर बोल हो।।


 


*फ* -फलीभूत हो तब अभिलाषा,


*ब* -बनें तभी सब काम भी।


*भ* -भय कैसा जब वरदहस्त हो,


*म* -महादेव का नाम भी।।


 


*य* -यही बताते धर्म सभी को,


*र* -रहना मिलकर साथ में।


*ल* -लड़ने से क्या मिल जायेगी?


*व* -वसुधा तुमको हाथ में।।


 


*श* -शहद सरस हो जाये जीवन,


*ष* -षड़यंत्रों से दूर हो।


*स* -समझो-सीखो सहज सरलता,


*ह* -हठ से मत भरपूर हो।।


 


*क्ष* -क्षमा करो देखो मत अवगुण,


*त्र* -त्रस्त समस्त विकार हों।


*ज्ञ* -ज्ञान-दीप हों दिव्य 'अधर' पर,


*श्र* -श्रद्धा सदृश विचार हों।।


 


👉 *ङं,ञ,ण,ड़,ढ़*


आगे आने से कतराते,


बैठे हैं मुख मोड़ के।


अधिक हठीले ङं ञ् ण ड़ ढ़ ये,


रहते पर मन जोड़ के।।


 


   शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर'❤️✍️


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