सुनील दत्त मिश्रा

छम गिरती बारिश की बूंदों का दिल से नाता है


और यह रिश्ता हमको भी बहुत निभाना आता है


फिसल न जाए पांव कहीं नीचे काई सी लगती है


लिखते जाओ लिखते जाओ सूखी स्याही लगती है


आज बरसती छत पर टप टप


कल नदियों में मिल जाएंगी।


फिर अपना अस्तित्व मिटा कर जल में कल कल कर जाएंगी


तन भी भीगा मनभी भीगा


यह तो बात पुरानी है


एक बूंद जो गिरी जीभ पर


गंगाजल सी मानी है


क्या लिखूं मैं मन की बातें


बौछारें क्या लायी है।


अब मौसम सूखा सूखा सा


किसने बात बताई है


तुम्हें निभाना आता है तो हमें बताना आता है


दोनों हाथों से सिर पर छाता भी बनाना आता है


 


सुनील दत्त मिश्रा फिल्म एक्टर राइटर की कलम से सुरक्षित सर्वाधिकार बिलासपुर छत्तीसगढ़


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