सुनील कुमार गुप्ता

धन्य मैं माँ तेरी कोख से जन्म लिया,


तेरी शिक्षा और संस्कारो से ही-


माँ तुमने ही यह मान दिलाया।


रूठो न मुझसे माँ अब तुम,


क्षमा करो मेरे अपराधों को-


माँ बस एक बार आ जाओ।


तुम बिन जीवन नहीं मेरा,


लौट कर आ जाओ माँ तुम-


माँ तुमसे कुछ कहना है।


रूठो न बताओ तुम मुझको,


माँ तुम हो कहाँ-


तुम बिन अब नही रहना है।


भूला नहीं हूँ बचपन की बाते,


प्यार भरी वो राते-


माँ तुम्हें याद आती है मेरी।


 


सुनील कुमार गुप्ता


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...