सुनील कुमार गुप्ता

मन ढूँढ़ रहा सहारा


मैं तो मैं से हारा साथी,


मन ढूँढ़ रहा सहारा।


भक्ति संग डूबा जो मन फिर,


जीवन को मिला कीनारा।।


कुछ न कहे मन की फिर साथी,


ये मन तो मन से हारा।पग-पग भटकन भरी मन यहाँ,


किसका-मिले फिर सहारा?


सोचता रहा मन जग में साथी,


कौन-जीता,कौन -हारा?


मैं तो मैं से हारा साथी,


मन ढूँढ़ रहा सहारा।।


 


         सुनील कुमार गुप्ता


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