आस
पतझड़ के मौसम में भी फिर,
साथी तुम होना न तुम उदास।
फूटेगी नव-कोपल फिर से,
रखना मन में ये आस।।
फूल खिलेगे उपवन में फिर,
यहाँ महकेगी हर एक साँस।
भटकेगे नहीं कदम फिर से,
साथी पल -पल जो हो पास।।
छट जायेगी गम की बदली,
साथी होना न तुम निराश।
खिल उठे ये धरती अंबर,
साथी जब होते तुम पास।।
सुनील कुमार गुप्ता
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