नव-रंग
"मिट जाती तन-मन की घुटन,
रह कर फिर अपनों के संग।
सोचता रहा मन पल-पल,
जीवन में छाये कुछ रंग।।
हरती उदासी तन-मन की,
ऐसा साथी होता संग।
छटती गम की बदली यहाँ,
जीवन में छाती उमंग।।
अंधेरे न हो जीवन में,
साथी जो चलते तुम संग।
भोर के उजाले में खिलते,
साथी जीवन के नव-रंग।।
सुनील कुमार गुप्ता
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