बस बन जाये इंसान
समझौता पल पल जीवन से,
जब कर लेता है-इंसान।
अपनत्व नही बसता उसमें,
कैसे-बनता वो इंसान?
अपनत्वहीन जीवन में फिर,
कैसे-चल पाता धनवान?
स्वार्थ की धरती पर चल ,
बन जता वो तो शैतान।।
परमार्थ होता जीवन में,
यहाँ बन जाता भगवान।
भगवान न शैतान बने फिर,
बस बन जाये इंसान ।।
सुनील कुमार गुप्ता
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