स्वार्थ संग जीवन में खेला
छट जाये अंधेरे जीवन के,
ऐसा हो भोर का उजाला।
छाये न कोई गम की बदली,
जीवन हो ख़ुशियों का मेला।।
आशाओं के अम्बर में साथी,
सुनहरे पलो संग खेला।
यथार्थ धरातल पर साथी फिर,
क्यों-जीवन में रहा अकेला?
संग-संग चले जीवन पथ पर,
कैसे-रहा साथी अकेला?
मैं-ही-मैं बसा तन-मन साथी,
स्वार्थ संग जीवन में खेला।।
सुनील कुमार गुप्ता
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