गुरु शिष्य का भाग्य विधाता
जाने जग मे सब साथी,
गुरु बिन ज्ञान नहीं-
जीवन मे कही सम्मान नहीं।
गुरु ही शिष्य का भाग्य विधाता,
इसमें कही कोई -
साथी अभिमान नहीं।
माँ जीवन की प्रथम गुरु,
देती जीवन संस्कार-
फिर भी मिलता उसे सम्मान नहीं।
गुरु चरणो में बैठ जो साथी,
करे सम्मान पाता ज्ञान -
बनता जीवन में महान वहीं।
गुरु का स्थान प्रभु से भी ऊँचा,
देता वही प्रभु मिलन की-
साथी दिशा सही।
भटकते कदमो को दे दिशा,
दे सच्चा ज्ञान-
सद् गुरु की पहचान यही।
गुरु ही शिष्य का भाग्य विधाता,
सत्य है ये तो-
इसमे कही दो मत नहीं।।
सुनील कुमार गुप्ता
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