रूप बदलती इस दुनियाँ में,
कौन-यहाँ अपना-बेगाना?
पहचान सके न साथी उन्हें,
जिसको कहे वो अपना?
अनजानी राहो पर चल कर,
कैसे-फिर वो मंज़िल पाना?
भटकन ही मिली जग में साथी,
कब-साथी को साथी जाना?
फूलो की चाहत में साथी,
क्यों-काँटो ने दामन थामा?
फूलो का नाता काँटो से,
कब -साथी जीवन में माना?
सुनील कुमार गुप्ता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें