रास्ते
रास्ते तो सीधे थे साथी,
मगर उन पर-
जीवन में चल न सका।
सत्य-पथ चल भी साथी,
इस जीवन में-
अपनत्व पा न सका।
भटकते जो कदम मेरे साथी,
जीवन में इसको-
मैं सह न सका।
साथी-साथी बन साथी,
छलता रहा जीवन में- किसी से कह न सका।
साथी साथी होता साथी,
बिन साथी जीवन में-
अकेला रह न सका।
रास्ते तो सीधे थे साथी,
मगर उन पर-
जीवन मे चल न सका।।
*****"**""*******""***
फिर वही जीवन महकाया
"स्नेह संग बंधा जो साथी,
वो जग में अपना कहलाया।
पग-पग जीवन में साथी,
फिर असीम सुख उसने पाया।।
मोह-माया के बंधन संग भी,
जो प्रभु को नहीं भूल पाया।
भक्ति पथ पर चले जो साथी,
वो जीवन सार्थक कर पाया।।
अंधकार में डूबा जीवन,
कौन-यहाँ दीप जला पाया?
लग्न लगी जो प्रभु संग साथी,
फिर वही जीवन महकाया।।
सुनील कुमार गुप्ता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें