सुनील कुमार गुप्ता

रास्ते


रास्ते तो सीधे थे साथी,


मगर उन पर-


जीवन में चल न सका।


सत्य-पथ चल भी साथी,


इस जीवन में-


अपनत्व पा न सका।


भटकते जो कदम मेरे साथी,


जीवन में इसको-


मैं सह न सका।


साथी-साथी बन साथी,


छलता रहा जीवन में- किसी से कह न सका।


साथी साथी होता साथी,


बिन साथी जीवन में-


अकेला रह न सका।


रास्ते तो सीधे थे साथी,


मगर उन पर-


जीवन मे चल न सका।।


*****"**""*******""***


फिर वही जीवन महकाया


"स्नेह संग बंधा जो साथी,


वो जग में अपना कहलाया।


पग-पग जीवन में साथी,


फिर असीम सुख उसने पाया।।


मोह-माया के बंधन संग भी,


जो प्रभु को नहीं भूल पाया।


भक्ति पथ पर चले जो साथी,


वो जीवन सार्थक कर पाया।।


अंधकार में डूबा जीवन,


कौन-यहाँ दीप जला पाया?


लग्न लगी जो प्रभु संग साथी,


फिर वही जीवन महकाया।।


 


सुनील कुमार गुप्ता


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