सोचा न था कभी जीवन में,
साथी इतना कुछ -
सहज ही पा जाऊँगा।
सद्गुरु की संगत से,
डूबी नैय्या -
पार लगा पाऊँगा।
जन्म दिया जिस माँ ने,
चलना और बोलना सिखाया,
ममता मयी उस माँ को-
नित शीष नवाऊँगा।
प्रथम गुरु है माँ मेरी साथी,
उसके ममतामयी आँचल के-
गीत गुनगुनाऊँगा।
ज्ञान का दीप जला कर,
उज्ज़वल कर दिया जीवन-
उस शिक्षक के तो-
चरणों में शीष झुकाऊँगा।
गुरु की महिमा अपार साथी,
ज्ञान -विज्ञान संग उससे ही-
भक्ति मार्ग भी पाऊँगा।
होगे प्रभु दर्शन जीवन में,
इसका रहस्य भी-
गुरु से ही जान पाऊँगा।
शिक्षक दिवस पर साथी
उनको कर नमन-
शुभाशीष पाऊँगा।
सोचा न था कभी जीवन में,
साथी इतना कुछ-
सहज़ ही पा जाऊँगा।।
सुनील कुमार गुप्ता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें