सुनील कुमार गुप्ता

इतनी लगन लगे प्रभु से,


फिर रहे न तम का डेरा।


आशाओ के अंबर में,


आये न निराशा का फेरा।।


घर-आँगन में हो साथी,


संग फूलों का डेरा।


दु:ख की बदली से ही फिर,


निकलेगा सुख का फेरा।।


धूप-छाँव से जीवन में,


साथी सुख-दु:ख का डेरा।


हरे दु:ख अपनो के साथी,


होगा जीवन का सबेरा।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...