सुनील कुमार गुप्ता

जीवन को


 


छाया-प्रतिछाया विचारो की,


बनाती-बिगाड़ती जन को।


विचारो की श्रृंखला पल-पल,


भटकाती रहती मन को।।


विचारो के मंथन संग ही,


यहाँ मिलती दिशा तन को।


भटके न कभी तन फिर जग में,


मिले शांति ऐसी मन को।।


सत्य-पथ पर चल कर ही साथी,


मिलती शांति फिर मन को।


स्वार्थ संग भटके जो यहाँ,


क्या-दोष दे इस जीवन को?


 


 सुनील कुमार गुप्ता


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