काश अपनी भी कहीं मुमताज हो।
कूकती सुर से भरी आवाज हो।
***
सामने अहले वफ़ा हो जाम के।
प्रेम के ही गीत गाता साज हो।
***
प्यार से वो इक नज़र बस देख लें।
मन लुभाता मोहिनी अंदाज हो।
***
तीर नज़रों के चलें फिर रातभर।
इक नए ही दौर का आगाज़ हो।
***
जिंदगी बीते मेरी फिर सुख भरी।
साथ उसके ही नई परवाज़ हो।
***
सुनीता असीम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें