सुनीता असीम

काश अपनी भी कहीं मुमताज हो।


कूकती सुर से भरी आवाज हो।


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सामने अहले वफ़ा हो जाम के।


प्रेम के ही गीत गाता साज हो।


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प्यार से वो इक नज़र बस देख लें।


मन लुभाता मोहिनी अंदाज हो।


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तीर नज़रों के चलें फिर रातभर।


इक नए ही दौर का आगाज़ हो।


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जिंदगी बीते मेरी फिर सुख भरी।


साथ उसके ही नई परवाज़ हो।


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सुनीता असीम


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