सुनीता असीम

ये सोचा भी नहीं था बीच अपने फासले होंगे।


मुहब्बत और दिल के बीच में कुछ कायदे होंगे।


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सुलग उठता मेरा मन हिज्र की भी बात से हमदम।


इन्हीं अनजान राहों में रहे कुछ हादसे होंगे।


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मुहब्बत के मुनासिब मामले होते नहीं अक्सर।


कभी जिल्लत कभी लानत बहस के काफिले होंगे।


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उसूलों के रिवाजों के बहाने ही बना करते।


जहां में प्यार के ऐसे खतम बस वास्ते होंगे।


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मिले बस आशिकों को दर्द औ मरहम नहीं मिलती।


कसक देते कहाँ तक दर्द के ये सिलसिले होंगे


 


सुनीता असीम


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