ये सोचा भी नहीं था बीच अपने फासले होंगे।
मुहब्बत और दिल के बीच में कुछ कायदे होंगे।
****
सुलग उठता मेरा मन हिज्र की भी बात से हमदम।
इन्हीं अनजान राहों में रहे कुछ हादसे होंगे।
****
मुहब्बत के मुनासिब मामले होते नहीं अक्सर।
कभी जिल्लत कभी लानत बहस के काफिले होंगे।
****
उसूलों के रिवाजों के बहाने ही बना करते।
जहां में प्यार के ऐसे खतम बस वास्ते होंगे।
****
मिले बस आशिकों को दर्द औ मरहम नहीं मिलती।
कसक देते कहाँ तक दर्द के ये सिलसिले होंगे
सुनीता असीम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें