हसीना खूब लगती है संवर कर।
वही आती नज़र देखो जिधर कर।
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चले गजगामिनी बनकर कभी वो।
दिखे है हुस्न उसका उफ़ निखर कर।
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सभी भंवरे बने रसपान करते।
गुलाबों सी महकती कुछ चटक कर।
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चरागे इश्क से जलता बदन फिर।
दिवाने कह रहे इक तो नज़र कर।
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जो लहराए कभी आंचल वो अपना।
गिरे फिर आशिकों के दिल बिखर कर।
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सुनीता असीम
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