सुनीता असीम

के द्वार बन्द पड़े हैं सभी मकानों के।


समेटके बैठे हैं पंख सब उड़ानों के।


****


न रास्ते में नज़र आए इक बशर कोई ।


लगे हुए हैं यहां ताले सब दुकानों में।


****


कि कह रहे हैं सभी बात को बढ़ा करके।


न रोकते हैं करोना के पर मुहानों को।


****


बड़ा था नाम निशाने लगाने में जिनका।


चले हैं तीर सभी खाली उन कमानों के।


****


बिना ही बात बखेड़ा किए सभी जाते।


कि स्वर बन्द करो उन सभी बख़ानो के।


****


सुनीता असीम


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...