सुनीता असीम

के द्वार बन्द पड़े हैं सभी मकानों के।


समेटके बैठे हैं पंख सब उड़ानों के।


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न रास्ते में नज़र आए इक बशर कोई ।


लगे हुए हैं यहां ताले सब दुकानों में।


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कि कह रहे हैं सभी बात को बढ़ा करके।


न रोकते हैं करोना के पर मुहानों को।


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बड़ा था नाम निशाने लगाने में जिनका।


चले हैं तीर सभी खाली उन कमानों के।


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बिना ही बात बखेड़ा किए सभी जाते।


कि स्वर बन्द करो उन सभी बख़ानो के।


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सुनीता असीम


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