जो जैसा भी बोऐंगे।
फसलें वैसी काटेंगे।
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बिगड़ेंगे सब बच्चे वो।
बाप जिन्हें बस डांटेगे।
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दोस्त बड़े गहरे सुख दुख।
मिलकर दोनों उट्ठेंगे।
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बिन सोचे मत कुछ कहना ।
सोच समझकर बोलेंगे।
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इक दिन ऐसा आएगा।
लोग हमें भी समझेंगे।
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अपने मन में जो आया।
खोल जुबां को कह देंगे।
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बीते दिन भी रह रहके।
खूब सभी को सालेंगे।
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सुनीता असीम
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