लगे रहना सभी तुम उस खुदा की सिर्फ खिदमत में।
कभी आने न देना कुछ कमी उसकी इबादत में।
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कयामत है सितमगर है इबादत है कज़ा भी है।
दिवानों को मिले जो ग़म लुटे फिर तो मुहब्बत में।
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करें आदर सभी का वो अगर संस्कार मिलते हैं।
मिलेंगे ये सभी में बस पिता मां से विरासत में।
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बना देती किसी को तो मिटा देती किसी को है।
बदलते रंग देखे हैं जमाने ने सियासत में।
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जवानों को नहीं परवाह होती जान की अपनी।
करें कुर्बान अपना सब वतन की वो हिफाजत में।
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सुनीता असीम
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