सुनीता असीम

मुझको नफरत से नहीं प्यार से डर लगता है।


चाहने वालों के इजहार से डर लगता है


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तीरगी दूर करे देखूँ जो चहरा उसका।


रोशनी के बिन अंधकार से डर लगता है।


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सिर्फ फूलों की तरह रक्खे हैं रिश्ते हमने।


बस कभी चुभते हुए ख़ार से डर लगता है।


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हर ख़बर मौत का संदेश लिए आए बस।


रोज़ आने वाले अख़बार से डर लगता है।


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अब न संस्कार रहे आज के बच्चों में भी।


उनके बिगड़े हुए आचार से डर लगता है।


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सुनीता असीम


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