सुनीता असीम

दुनिया में रहा जिसका कोई न ठिकाना है।


बेशक है खुदा उसका कहता ये जमाना है।


****


मगरूर हुआ दुश्मन खतरे में वतन है अब।


अपना तो हमें दम भी दुश्मन को दिखाना है।


****


आँखें भी दिखाता है गैरत न बची इसमें।


मैदान में आके इसके छक्के छुड़ाना है।


****


ख्वाहिश नहीं पूरी जिसकी कोई है होती।


भगवान को देता रहता शख्स वो ताना है।


****


क्यूं भूल ये है जाता इंसान यहां आकर।


आया है यहाँ पर जो इक दिन उसे जाना है।


****


सुनीता असीम


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...